आचार्य वीरेंद्र नारायण - परिचय

आचार्य वीरेंद्र नारायण पिछले 25 वर्षों से ज्योतिष शास्त्र एवं धर्म अध्ययन के क्षेत्र में एक स्थापित व्यक्तित्व हैं। ज्योतिष शास्त्र की लगभग प्रत्येक विधा में आचार्य वीरेंद्र सिद्धहस्त माने जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अलावा वास्तु शास्त्र एवं जन्म कुंडली विवेचना मैं इन्हें महारत हासिल है। देश के कई सफल व्यक्तित्व राजनीतिक हस्तियां एवं फिल्म कलाकारों के बारे में इनके द्वारा की गयी समस्त भविष्यवाणियां सत्य साबित हुई हैं। मानव जीवन से जुड़ी सभी समस्याओं का ज्योतिषीय समाधान करना आचार्य वीरेंद्र की विशेषता हैं। ज्योतिष में व्याप्त अंधविश्वास के खिलाफ जागरूक करने एवं वैज्ञानिक पद्धति से अध्यात्म एवं कर्मकांड के विश्लेषण से समस्याओं का समाधान करना इनका अधिकार क्षेत्र हैं। रत्न विधि एवं कर्मकांड के द्वारा समस्याओं के समाधान के कारण इन्हें वर्षों में व्यापक प्रतिष्ठा मिली हैं।

कैरियर-व्यवसाय

कैरियर में यदि किसी प्रकार की बाधा आ रही हो, किस क्षेत्र में कैरियर का चुनाव किया जाए आदि विषयों पर आचार्य वीरेंद्र नारायण से सटीक समाधान प्राप्त किया जा सकता हैं। व्यवसाय से जुड़ी अनेकानेक परेशानियों जैसे व्यवसाय में घाटा, लगातार धन की हानि को रोकने, व्यवसाय का सटीक चुनाव तथा व्यवसाय में उत्तरोत्तर प्रगति से जुड़े परामर्श पाकर सैकड़ों व्यवसायियों ने अपना व्यापार खड़ा किया और नियमित तौर पर आचार्य वीरेंद्र से मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं।

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नौ ग्रहो की पूजा

इन ग्रहों की पूजा आचार्य जी की सिफारिश के अनुसार की जाती है। यह पूजा ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से की जाती है ।

सूर्य 28000 संख्या अकवन के समीधा से दशांस हवन। 1/4 = 7000 संख्या
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चन्द्र 44000 संख्या पलास के समीधा से दशांस हवन। 1/4 =11000 संख्या
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मंगल 40000 संख्या खैर के समीधा से दशांस हवन। 1/4 =10000 संख्या
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बुध 36000 संख्या अपामार्ग के समीधा से दशांस हवन। 1/4 = 9000 संख्या
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गुरु 76000 संख्या पीपल के समीप के समीधा से दशांस हवन। 1/4 = 19000 संख्या
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शुक्र 64000 संख्या गुलर के समीधा से दशांस हवन। 1/4 = 16000 संख्या
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शनि 92000 संख्या शमि के समीधा से दशांस हवन। 1/4 = 23000 संख्या
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राहु 72000 संख्या दूर्वा के समीधा से दशांस हवन। 1/4 = 18000 संख्या
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केतु 68000 संख्या कुश के समीधा से दशांस हवन । 1/4 = 17000 संख्या
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दोष शांति पूजा

नवग्रह शांति

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शुक्र +राहु - टभोत्वक योग

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पूर्ण/अर्धकाल सर्प योग

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योग - व्यतिपात, अतिगंड, गंड, व्याधात, वैधृति, वज्र ,विषकुम्भ

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मंगल दोष, मंगल + राहु-अंगारक योग

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विष्टि करण/भद्रा

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काल सर्प पूजा

कालसर्प दोष निवारण तब बनता है जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच स्थित होते हैं। जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में आ जाते हैं यानि चंद्रमा की उत्तरी नोड और चंद्रमा की दक्षिण नोड के बीच कालसर्प योग बनता है। पूर्ण कालसर्प योग तभी बनता है जब कुंडली का आधा भाग ग्रहों से मुक्त हो। कालसर्प योग एक भयानक योग है जो किसी के जीवन को दुखी कर सकता है। इस योग के प्रभाव में आने वाला व्यक्ति कष्ट और दुर्भाग्य का जीवन व्यतीत करता है। यदि यह अत्यधिक पीड़ित है तो यह योग चार्ट के सभी अच्छे योगों को रद्द करने की क्षमता रखता है।

यह पूजा नासिक में आयोजित की जाती है।
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